शिखर दर्शन से भी उतना ही पुण्य मिलता है जितना मंदिर में प्रतिमा के दर्शन करने का : आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी


सत्तरभेदी पूजा व ध्वजारोहण के साथ शांतिनगर आदिनाथ जिन मंदिर में गूंजा पूण्याहम्-पूण्याहम्



 


बेंगलूरु। यहां शांतिनगर  स्थित श्री आदिनाथ जिन मंदिर के 14 वर्ष पूर्ण होने पर  शुक्रवार सुबह श्री भक्तामर पाठ एवं  सत्तरभेदी पूजा की गई। इसके बाद आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी व मुनि श्री महापद्मसागर की पावन  निश्रा में जिनमंदिर के अमर ध्वजा के लाभार्थी शा राजेंद्रजी एवं त्रिलोकजी बोथरा परिवार के सौजन्य से पुण्याहम-पुण्याहम, प्रियन्ताम-प्रियन्ताम.. की गूंज के साथ मंदिरजी के शिखर पर ध्वजारोहण किया गया। ट्रस्ट के पदाधिकारी ने बताया कि पूरे मंदिर परिसर को फूलों से श्रंगारित किया गया व धार्मिक एवं आध्यात्मिक उल्लास के साथ यह आयोजन संपन्न हुआ। इससे पूर्व आचार्यश्री बाजे गाजे के साथ लाभार्थी परिवार के घर सकल श्रीसंघ के साथ पधारे। इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी ने श्रद्धालुओं को बताया कि वस्तु पदार्थ जितने पुराने होते जाते, उतना उनका मूल्य कम होता जाता है, लेकिन प्रभु प्रतिमा जितनी प्राचीन होती है उतनी अधिक मूल्यवान होती जाती है। ऐसे परमात्मा की सेवा अर्चना कर हम मुक्ति पद को प्राप्त कर सकते हैं। जिस प्रकार मनुष्य शरीर में सबसे ऊपर स्थित मुंह का विशिष्ट महत्व होता है उसी प्रकार जिन मंदिर में शिखर एवं ध्वजा का विशिष्ट महत्व एवं स्थान होता है। वे बोले कि ध्वजा में लोगों को बुलाने की क्षमता होती है। श्रावकों को चाहिए कि वह भी ध्वजा को देख कर भगवान का मंदिर होने का अहसास कर प्रभु को ह्रदय में विराजमान कर स्तुति करें, जीवन सार्थक होता जाएगा। मान्यताओं के अनुसार हर दिन लोग मंदिर जाकर भगवान की पूजा करते हैं लेकिन किसी कारण से मंदिर नहीं जा पाते हैं तो शास्त्रों में उनके लिए भी उपाय बताया गया है कि मंदिर ना जाने से भी मंदिर जाने का पुण्य मिलता है। माना जाता है कि मंदिर के अंदर नहीं जा पा रहे हैं तो बाहर से ही मंदिर के शिखर को प्रणाम कर सकते हैं। शिखर दर्शन से भी उतना पुण्य मिलता है जितना मंदिर में प्रतिमा के दर्शन करने से मिलता है। आचार्य श्रीजी ने कहा कि शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि है कि शिखर दर्शनम पाप नाशम। इसका अर्थ है कि शिखर के दर्शन कर लेने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मंदिर ऊंचे बनाने और उनपर शिखर लगाने का ये कारण होता है कि लोग आसानी से मंदिर के शिखर को देख पाएं। उन्होंने कहा कि जब भी मंदिर के बाहर से गुजरें तो ध्वज और कलश को प्रणाम जरुर करना चाहिए। शिखर के दर्शन करते हुए आंखें बंद करके अपने इष्ट देव को अवश्य याद करना चाहिए। इससे मंदिर में जाने जितना ही पुण्य प्राप्त होता है। बड़ी शांति का पाठ करके सभा का समापन किया गया।  विधिकारक तुषार  गुरुजी द्वारा विधान संपन्न कराए गए। संगीतकार कमलेश ने अनेक भक्तिमयी प्रस्तुतियां दी। शहर के विभिन्न उपनगरों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।



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