अभिनव सेवा ; श्री चन्द्रप्रभ गौरक्षा जीवदया समिति निरीह प्राणियों के लिए नित्य दाने-पानी व भोजन की कर रही हैं व्यवस्था


बेंगलुरु। किसी देश की महानता और नैतिकता की प्रगति का अंदाजा उस देश के वाशिंदों के पशु पक्षियों के प्रति व्यवहार को देखकर लगाया जा सकता है। लोकडाउन के दौरान पशु-पक्षियों के प्रेम की ऐसी ही कहानी में शारदा चौधरी का किरदार भी अग्रणी पंक्ति में बतौर नायिका के रूप में दिखाई देता है। जिनकी टीम के लोग अपनी जान पर खेलकर लोक डाउन के दौरान पशु-पक्षियों के लिए दाने-पानी अथवा भोजन-चारे की व्यवस्थाओं में जुटे हैं अर्थात इंतजाम कर रहे हैं। ऐसे पशु पक्षी प्रेमी निश्चित ही सेल्यूट के हकदार भी हैं। यानी जहां वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस शरीर की महामारी और लोक डाउन के चलते दुनिया भर में सब कुछ थम सा गया है सरकार भले ही मदद का हाथ बढ़ा रही है। वहां गौरक्षा जीवदया समिति बेंगलुरु की टीम सामूहिक समन्वय से राजधानी की प्रत्येक गौशाला के लिए चारे आदि की व्यवस्था कर रही है। उधर कहने को तो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन निरीह पशु-पक्षियों को किसी प्रकार से राहत मिली हुई है अर्थात परिंदों के लिए तो हवाएं शुद्ध हो ही गई है, लेकिन इनके दाने-पानी का संकट लाजमी है। जहां सुबह-शाम सैर पर निकलने वाले लोग अभी घरों में है। वहीं कुछ ऐसे पशु-पक्षी प्रेमी है जो मानवता के साथ-साथ जीवदया के तहत इन प्राणियों की मदद में जुटे हुए हैं। शारदा जवाहर चौधरी जो कि गौरक्षा जीवदया समिति व श्री चन्द्रप्रभ जीवदया गौशाला समिति से जुड़ी है उनके साथ में ऐसी अनेक महिलाएं हैं जो कि सामूहिक रूप से इस प्रयास में भागीदार बनी हुई है इनमें पुष्पा चोपड़ा, कला शोभावत, पवनी बाफना, मंजू खाण्टेड, सुशीला भंसाली, नंदा मेहता, अनिता दांतेवाडिया, चंद्रा शर्मा, ललिता गुलेच्छा व आशाबेन भोजानी आदि हैं, जिनका एक ही उद्देश्य है कि कोई भी जीव भूखा न रहे। इसी के मद्देनजर इनके द्वारा शहर की प्रत्येक गौशालाओं में प्रतिदिन चारे-पानी व फलों आदि का वितरण तथा चुग्गा घरों में अनाज-दाने डलवाये जा रहे हैं। बेजुबानो के भोजन-पानी की चिंताओं को दूर करने में वरिष्ठ समाजसेविका शारदा चौधरी के साथ ये श्रद्धावान महिलाएं अलग-अलग तरीकों से व्यवस्थाएं सुचारू कर रही हैं। वर्ष 2016 से सक्रिय इस समिति द्वारा नियमित रुप से गौशालाओं में सहयोग के साथ-साथ साध्वीवृन्द की वैयावच्च विहार सेवा में भी भागीदारी अथवा योगदान सक्रियता से रहता है। शारदा चौधरी कहती है कि समाज में स्नेह, करुणा के भाव भौतिकता के दौर में भी जिंदा है। वे एक मशहूर गीत को गुनगुनाते हुए कि, पंछी-नदियां-पवन के झोंके-कोई सरहद ना इन्हें रोकें..। के साथ यह भी कहती हैं कि निश्चित ही हम सब का सत्प्रयास सार्थक है तो इन मूक प्राणियों के लिए भी प्रत्येक नागरिक को आगे आकर मदद करनी ही चाहिए।



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