एसडीएम को जिम्मेदार ठहराने के बजाए मजदूरों को गंतव्य तक पहुंचाया जाए, जब इतनी सहानुभूति है तो फिर मजदूर परिवार सहित सड़क पर पैदल क्यों चल रहा है?

 


न्यूजडेस्क। कोरोना वायरस के मद्देनजर घोषित लॉकडाउन में प्रदेश और देश में जिस तरह करोड़ों मजदूर परिवार सहित सड़क पर है, उसे लेकर 14 मई की रात को 8 बजे सबसे बड़े न्यूज नेटवर्क के न्यूज 18 राजस्थान चैनल पर लाइव बहस हुई, चूंकि बहस का विषय ज्वलंत था, इसलिए बहस सारगर्भित रही। चैनल के सम्पादक जेपी शर्मा ने बहस को गरिमामय तरीके से संचालित किया। इसलिए सभी विशेषज्ञों को अपनी बात रखने का अवसर मिला। पूरा देश चाहता है कि मजदूर वर्ग जल्द से जल्द अपने घर लौटे। 15 मई को अखबारों में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बयान प्रकाशित हुआ है। गहलोत ने कहा है कि अब यदि मजमदूर सड़क पर दिखे तो संबंधित क्षेत्र का एसडीएम जिम्मेदार होगा। मुख्यमंत्री ने यह तो नहीं बताया कि दोषी पाए जाने पर एसडीएम के खिलाफ क्या कार्यवाही होगी? लेकिन सवाल उठता है कि एसडीएम जिम्मेदार क्यों होगा? सरकार ने जो नीति बनाई उसी का परिणाम है कि आज मजदूर सड़क पर है। यानि सरकार ने जो गलती की, उसकी जिम्मेदारी एसडीएम पर डाली जा रही है। पूरे देश में अशोक गहलोत पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने राजस्थान के प्रवासी मजदूरों को लाने की घोषणा की। इसलिए केन्द्र सरकार पर दबाव डालकर श्रमिक स्पेशल टे्रने भी चलवाई। सीएम ने कह तो दिया कि सड़क पर चलते मजदूरों को रोक आश्रयस्थलों में रखा जाए और फिर उनके गतंव्य तक पहुंचाया जाए। पहली बात तो यह कि जो मजदूर सिर पर कफन बांध कर अपने परिवार के साथ पैदल ही चल पड़ा है, वह मजदूर क्या गहलोत के आश्रय स्थल पर ठहरेगा? मुख्यमंत्री अच्छी तरह समझ लें कि कफन बांधने वाला मजदूर अब अपने घर पहुंच कर ही सांस लेगा। एसडीएम तो क्या कोई ताकत ऐसे मजदूर को नहीं रोक सकती है। चूंकि मुख्यमंत्री विज्ञापन देते हैं, इसलिए अखबारों में कुछ भी छपवाया जा सकता है। अखबार वाले तो विज्ञापनदाता की वाहवाही करेंगे ही। अच्छा हो कि गहलोत यह पता लगाएं कि मजदूर सड़क पर क्यों आया है!? 


मोदी सरकार बताए..


14 मई को राहत- भाग दो में केन्द्रीय वित्त मंत्री सीतारमन ने मजदूर और किसान के प्रति सहानुभूति जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत में किसान और मजदूर एक दूसरे के पूरक हैं। मजदूर जहां फैक्ट्री में अपना पसीना बहाता है तो किसान हर मौसम में खेत पर खड़ा रहता है। मजदूर के पसीने से उद्योग का पहिया घूमता है तो किसान की हाड़तोड़ मेहनत से देशवासियों को अनाज मिलता है। लेकिन आज ये दोनों ही वर्ग सड़क पर पैदल चलने को मजबूर हैं। मोदी सरकार मजदूरों को मुफ्त अनाज से लेकर घर तक की सुविधा दे रही है तथा किसानों को न चुकाने वाला लोन दे रही है। मोदी सरकार को भी पता है कि किसानों को आज दिया जाने वाला लोन कल माफ करना ही पड़ेगा। सवाल उठता है कि जब मजदूर किसान के प्रति इतनी सहानुभूति है तो फिर करोड़ों मजदूर सड़क पर क्यों हैं? इस सवाल का जवाब मोदी सरकार को देना चाहिए। अभी मजदूर को न तो सस्ते किराए का मकान चाहिए और न ही मुफ्त में अनाज। जो मजदूर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ फैक्ट्री वाले शहर से निकला है उसे अपने घर पहुंचाया जाए। अच्छा हो कि बसों एवं ट्रेनों से ऐसे श्रमिकों को अपने गंतव्य तक पहुंचाया जाए। जिस मजदूर ने अपने सिर पर कफन बांध लिया है उसे यह कोरोना वायरस से डर नहीं लगता है। मोदी सरकार मजदूर की इस मंशा को अच्छी तरह समझे। 
(साभार: एसपी.मित्तल)