"चालो रे चालो शत्रुंजय दादा रे आदिनाथ दादा रे दरबार"


शत्रुंजय भाव यात्रा से सर्व प्रकार के दुष्कर-पाप नष्ट होते व कर्म निर्जरा होती है : डॉ वसंतविजयजी म.सा.



 
इंदौर। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर एवं शत्रुंजय तीर्थाधिपति दादा श्रीऋषभदेव परमात्मा के जन्म कल्याणक के उपलक्ष में पूर्व दिवस पर यहां के श्रीरामकृष्ण बाग में श्री शत्रुंजय महातीर्थ की अलौकिक भावयात्रा का अद्भुत संगीतमय वाचन श्रीकृष्णगिरी शक्तिपीठाधिपति, राष्ट्रसंत, विद्यासागर डॉ वसंतविजयजी म.सा. ने रविवार को किया। श्री शत्रुंजय महातीर्थ की विशाल प्रतिकृति के अतिदिव्य मंच से यह कार्यक्रम हुआ तथा 108 किलो के महामोदक का भोग भी लगाया गया। संतश्रीजी ने इस अवसर पर भावयात्रा का मध्य प्रदेश की धरा से पहली बार वाचन किया। इस मौके पर उन्होंने भक्ति भाव की जड़ में जल सींचने की सीख देते हुए कहा कि जो ईश्वर के सामने झुकता है उसे दुनिया के सामने झुकने की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने कहा कि शत्रुंजय का नाम लेने वाले अथवा इस महातीर्थ की भाव यात्रा को श्रवण करने वालों को स्वयं मणिभद्र देव अदृश्य रूप से प्रकट होकर कल्याण करते हैं। उन्होंने बड़ी संख्या में उपस्थित सफेद परिधान में पुरुषों एवं लाल चुनरी की वेशभूषा में श्राविकाओं की आंखों पर सफेद पट्टी बंधवाकर ओम का गुंजायमान कराते हुए भाव पूर्वक पुष्पक विमान से शत्रुंजय महातीर्थ पहुंचाया। उन्होंने कहा कि सौराष्ट्र प्रांत के विश्व प्रसिद्ध इस अलौकिक मोक्षगामी महातीर्थ की यात्रा से सर्व प्रकार के दुष्कर पाप समाप्त हो जाते हैं एवं कर्म निर्जरा होती है। डॉ वसंतविजयजी ने कहा कि धर्म, ज्ञान, गुण एवं संस्कारों का प्राकट्य श्रद्धालु में होता है। उन्होंने बावड़बावला की कहानी का व पालीताणा जीर्णोद्धार प्रसंग के साथ अनेक तीर्थंकरों गणधरों को नमन करवाते हुए सुरमयी संगीत के भजनों की प्रस्तुतियां दी। उन्होंने कहा कि धर्म में लाभ है संसार में नहीं। डॉ वसंतविजयजी ने बताया कि एक तिर्यंच तोता शत्रुंजय की भाव यात्रा व पूजा से गुलाब चंद के रूप में सेठ बना वही फिर देव भी बना ऐसा  अलौकिक महातीर्थ तीनों लोकों में नहीं है। करोड़ों संत मुनि और अनंत आत्माएं जहां से मोक्ष गामी हुई ऐसे महातीर्थ की भावयात्रा के दौरान उन्होंने चालो रे चालो शत्रुंजय दादा रे दरबार आदिनाथ दरबार.., जय आदिश्वर जय भगवान..,  तुझे सूरज कहूं या चंदा भक्ति करे यह बंदा.., लगन लागी रे माने ऋषभ थारे नाम री.., गुरु आपकी कृपा से मेरा सब काम हो.., हु तो ऋषभ प्रभुरी भक्ति करूं..,  मैं शत्रुंजय गांऊँ तेरे चरणों शीश नवाऊँ.. सरीखे अनेक की भजन भी प्रस्तुत किए। श्री कृष्णगिरी पार्श्व पद्मावती भक्त मंडल इंदौर के तत्वावधान में हुए इस दिव्यतम आयोजन में संतश्रीजी द्वारा मंत्रोच्चार के साथ 108 किलो महामोदक का भोग आदिनाथ दादा के दरबार में लगाया गया। सभी का स्वागत मंडल के अध्यक्ष अभय बागरेचा ने किया एवं सभी का आभार अजय कटारिया ने जताया। डॉक्टर सुनील मंडलेचा ने संचालन किया। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण पारस चैनल से किया गया है।





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