परिग्रह के साथ रहे पवित्रता : आचार्य महाश्रमणजी


इचलकरंजी से शांतिदूत ने किया 15 किमी का प्रलम्ब विहार 



जयसिंहपुर, (महाराष्ट्र)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार प्रातः इचलकरंजी के तेरापंथ भवन से मंगल विहार किया। तीन दिवसीय प्रभावक प्रवास की सम्पन्नता पर अपने आराध्य को विदाई देते हुए श्रद्धालु भी भावुक हो उठे। 15 किमी. के विहार मार्ग के दौरान जब संजय घोड़ावत ने अपनी फैक्ट्रियों पर गुरुदेव से पदार्पण की अर्ज की तो करुणासागर ने भी मंगलपाठ एवं आशीष से उन्हें कृतार्थ कर दिया। धवल सेना के साथ संतश्री का विनोद घोड़ावत के निवास स्थान पर महाश्रमण पैलेस में पदार्पण हुआ। प्रवचन सभा में ज्ञान गंगा प्रवाहित करते हुए शांतिदूत श्री महाश्रमण ने कहा, आदमी के भीतर कामना होती है। लेकिन कई बार कामना का अतिरेक हो जाता है, वह बढ़ जाती है। इच्छा तो अनंत हो सकती है उसे आकाश की तरह अंतहीन कहा गया है। व्यक्ति को कामनाओं को सीमित करना चाहिए। भोग की सीमा करनी चाहिए। होते हुए भी त्याग करना संयम है। व्यक्ति के पास सारी सुविधाएं है तो भी उसकी सीमा करनाज़ नहीं भोगना बड़ी बात होती है। उन्होंने कहा कि दुख का एक कारण इच्छा को कहा जा सकता है। एक इच्छा पूरी होते ही व्यक्ति को और चाहिए। दुनिया में त्यागी भी हुए हैं। हम आचार्य तुलसी को देखें। आचार्य पद पर होते हुए भी उन्होंने उसका विसर्जन कर दिया। महाप्रज्ञजी को आचार्य बना दिया। यह कितना बड़ा त्याग है। मनोबल और त्याग की चेतना हो तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। परिग्रह के साथ पवित्रता का योग होना चाहिए। नैतिकता, सिद्धांत जीवन में रहे। परिग्रह पर त्याग व संयम का अंकुश रहे। विसर्जन की चेतना मन में रहे। खासकर इच्छाओं का भोगो का परिमाण करे तो चेतना अच्छी बन सकती है। आत्मा अच्छी बन सकती है।
कार्यक्रम में श्रद्धाभिव्यक्ति के क्रम में विनोद घोड़ावत,  एसजीयू के चांसलर संजय घोड़ावत, राजेन्द्र घोड़ावत आदि ने अपने विचार रखे। संदीप, रौनक, तविष, स्नेहल, पूजा घोड़ावत आदि परिवारिकजनों ने स्वागत गीत का संगान किया। शांतिदूत श्री महाश्रमण का 4 व 5 फरवरी को जयसिंहपुर तेरापंथ भवन में प्रवास रहेगा। 6 तारीख को आचार्यश्री सांगली में पधारेंगे।


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